Hello friends...
किसी जगह पर एक खुशहाल परीवार रहता था । पती और पत्नि दोनो मे ही आपस मे बहोत प्यार था । एक दुसरे के बिना मानो उन्हे एक क्षण भी चलता नही था । पुरा परीवार उन्हे खुश देखकर बहोत खुश होता था।
पर उन्हे एक परेशानी थी ।
उनकी एक लडकी थी, जो वक्त के साथ साथ शारीरिक तौर पर तो बडी हो रही थी पर उसका मानसिक विकास बिलकुल नही हो रहा था ।मतलब उसकी उम्र तो बढ रही थी, पर उसकी हरकते, उसके हाव भाव और उसके काम किसी छोटी सी बच्ची के जैसे ही थे ।
जब लडकी के माता - पिता को उसकी इस समस्या के बारे मे पता चला तब वो बेहद दुखी हुए । उन्होने लडकी का ईलाज करवाने का निर्णय लिया । उन्होने शहर के अच्छे से अच्छे डोक्टरो को दिखाया, उसके बावजुद भी लडकी ठिक नही हुई ।
जैसे जैसे लडकी बडी हो रही थी, वैसे वैसे घरवालो की परेशानी बढती जा रही थी । घर के सभी सदस्यो ने लडकी को ठिक करवाने के लिए तरह तरह के उपचार करवाए । कोई उसे एक डोक्टर के पास ले जाता तो कोई किसी दुसरे डोक्टर के पास । कोई उसके लिए मिन्नते करता तो कोई उसके लिए दुआ करता । पर इन सबके बावजुद भी लडकी मे कोइ फर्क नही दिख रहा था । और लडकी की उम्र और साथ साथ मे घरवालो की परेशानी भी बढती जा रही थी ।
धीरे धीरे लडकी 16 साल की हो गइ, पर अब भी उसे यही लग रहा था कि वो सिर्फ 4 या 5 साल की ही है । इसलिए उसका बर्ताव भी किसी 4 या 5 साल की लडकी के जैसा ही था।
उसकी हरकतो से परेशान होकर और लोगो मे उसकी वजह से हास्यास्पद बनने की वजह से घर के सारे सदस्य निराश हो गए । निराश होकर उन्होने लडकी को एक कमरे मे बंद कर दिया ।
एक दीन, लडकी बंद कमरे मे बैठी हुइ कुछ खेल रही थी । उसी वक्त घर के बाहर से एक बेन्ड निकलता है । बेन्ड वाले कुछ संगीत बजा रहे होते है जो लडकी के कानो मे पडता है । जैसे ही लडकी संगीत सुनती है वैसे ही मानो जैसे कोइ चमत्कार हुआ ।
लडकी अचानक से बडो की तरह बर्ताव करने लगी थी । उसे अपनी वास्तविक उम्र ज्ञात हो जाती है और उसका मानसिक विकास भी हो जाता है ।
परीवार के सभी सदस्य चकित रह जाते है, साथ ही उन्हे बेहद खुशी भी होती है । डोक्टर को दिखाने से मालूम पडा कि संगीत कि आवाज ने लडकी के दिमागी तंतुओ पे असर की जिसकी वजह से लडकी को अपने दिमाग की वास्तविक क्षमता ज्ञात हुई और उसका मानसिक विकास हुआ और लडकी बडो की तरह बर्ताव करने लगी ।
मानो यह कहानी जैसे हमे भी यह बताती है कि हम भी हंमेशा हमारा मूल्य अपनी वास्तविक क्षमता से कम ही आंकते है । हम भी हमारी क्षमता के उपर संदेह करते है और हमारी काबिलीयत से कम काबिलीयत वाला काम अपने लिए पसंद करते है । और परिणाम स्वरुप हम कभी भी हमारी काबिलीयत के मुताबिक आगे नही बढ पाते । फिर किसी दिन हमे हमारी वास्तविक क्षमता ज्ञात होती है पर तब बहोत देर हो चुकी होती है ।
ईसलिए देर हो जाए उससे पहले, सही वक्त पर हमे खुद हमारी वास्तविक क्षमता पहचाननी चाहिए ।
हमारी पौराणिक गाथा, "रामायण" का एक किस्सा भी हमे यह सिखाता है । हनुमान जी अपनी वास्तविक क्षमता, अपना वास्तविक बल भुल जाते है । फिर जब सही वक्त आता है तब जांबुवन जी उन्हे उनकी वास्तविक क्षमता ज्ञात करवाते है ।
हमे भी कदम कदम पर हमारी वास्तविक क्षमता ज्ञात करवाई जाती है, हमारे सामने भी वह संगीत बजाया जाता है, हमे भी जांबुवन जी मिलते है, कभी किसी घटना के रुप मे, कभी किसी दुर्घटना के रुप मे, तो कभी किसी ईन्सान के रुप मे । बस जरुरत है तो उसे पहचानने की ।
और अगर कोई संगीत हमारे लिए ना बज रहा हो या फिर अगर हमे जांबुवन जी से ना मिलवाया जा रहा हो तो हमारे लिए जरुरी है कि जो उस लडकी के लिए वह संगीत, या फिर हनुमान जी के लिए जांबुवन जी थे, हमारे लिए वह हम खुद बने । हम खुद ही अपने आप को हमारी वास्तविक क्षमता ज्ञात करवाए और जीवन मे हमारी वास्तविक क्षमता के अनुसार खुब तरक्की करे।
और जब हमे हमारी वास्तविक क्षमता ज्ञात हो जाती है तब हमे लगता है जैसे हम हमारे वास्तविक रुप से मिल गए हो । और उसके बाद हमे हमारी वास्तविक क्षमता के अनुसार तरक्की करने से कोई नही रोक सकता ।
तो दोस्तो, आप तैयार हो ना अपनी वास्तविक क्षमता जानने के लिए ? अपने वास्तविक रुप से मिलने के लिए ? तो बन जाईए अपने खुद के जांबुवन जी और पहचानिए अपनी वास्तविक क्षमता को । एक नया मौका एक नये जीवन के रुप मे आपका इंतेजार कर रहा है ।
All the best
अपना ख्याल रखिए, खुश रहीए ।
- Yagnesh Kaklotar
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